कहा रसखानि सुखसंपति सुमार कहा

पीछे

कहा रसखानि सुखसंपति सुमार कहा,
     कहा तन जोगी ह्वै लगाए अंग छार को।
कहा साधे पंचानल कहा सोए बीच नल,
     कहा जीत लाए राज सिंधु आर पार को।
जप बार बार तप संजम बयार ब्रत,
          तीरथ हजार अरे बूझत लबार को।
कीन्हीं नहीं प्यार सेयो दरबार चित,
  चाह्यो न निहारो जो पै नन्द के कुमार को। 

पुस्तक | सुजान रसखान कवि | रसखान भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | घनाक्षरी