ब्याही अनब्याही ब्रजमाहीं सब चाही तासों

पीछे

ब्याही अनब्याही ब्रजमाहीं सब चाही तासों
       दूनी सकुचाई दीठि परै न जुन्हैया की।
नेकु मुसकानि रसखानि की बिलोकत ही
       चेरी होत एक बार कुंजनि दिखैया की।
मेरो कह्यो मानि अंत मेरो गुन मानि हैरी
     प्रात खात जात ना सकात सौंह भैया की।
माइ की अँटक जौलौं सासु की हटक तौलौं
       देखी ना लटक मेरे दूलह कन्हैया की।  

पुस्तक | सुजान रसखान कवि | रसखान भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | घनाक्षरी