राधामाधव सखिन संग, बिहरत कुंज कुटीर

पीछे

1.    जो जातें जामें बहुरि जा हित कहियत बेस।
        सो सब, प्रेमहिं प्रेम है, जग रसखान असेस।।


2.    कारजकारन-रूप यह, प्रेम अहै रसखान।
        कर्ता, कर्म, क्रिया, करण, आपहि प्रेम बखान।।


3.    प्रेमनिकेतन श्रीवनहिं, आइ गोवर्धन-धाम।
        लह्यो सरन चितचाहि कै, जुगलसरूप ललाम।।


4.    तोरि मानिनी तें हियो, फोरि मोहिनी-मान।
        प्रेमदेव की छविहि लखि, भए मियाँ रसखान।।


5.    राधामाधव सखिन संग, बिहरत कुंज कुटीर।
        रसिकराज रसखानि जहँ कूजत कोइल कीर।।

पुस्तक | प्रेमवाटिका कवि | रसखान भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | दोहा
विषय | प्रेम,