याही तें सब मुक्ति तें, लही बड़ाई प्रेम

पीछे

1.    पै एतो हूँ हम सुन्यौ, प्रेम अजूबो खेल।
        जाँबाजी बाजी जहाँ, दिल का दिल से मेल।।


2.    सिर काटो, छेदो हियो, टूक टूक करि देहु।
        पै याके बदले बिहँसि, वाह वाह ही लेहु।।


3.    अकथ-कहानी प्रेम की, जानत लैली खूब।
        दो तनहूँ जहँ एक भे, मन मिलाई महबूब।।


4.    दो मन इक होते सुन्यो, पै वह प्रेम न आहि।
        होइ जबै द्वै तनहुँ इक, सोई प्रेम कहाहि।।


5.    याही तें सब मुक्ति तें, लही बड़ाई प्रेम।
        प्रेम भए, नस जाहिं सब, बँधे जगत के नेम।।

पुस्तक | प्रेमवाटिका कवि | रसखान भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | दोहा
विषय | प्रेम,