प्रेम-प्रेम सोउ कहत, प्रेम न जानत कोय
पीछे1. प्रेम अयनि श्रीराधिका, प्रेम-बरन नँदनंद।
प्रेमवाटिका के दोऊ, माली-मालिन-द्वन्द्व।।
2. प्रेम-प्रेम सोउ कहत, प्रेम न जानत कोय।
जो जन जानै प्रेम तो, मरै जगत क्यों रोय।।
3. प्रेम अगम अनुपम अमित, सागर सरिस बखान।
जो आवत एहि ढिग, बहुरि जात नाहिं रसखान।।
4. प्रेम-बारुनी छानिकै, बरुन भए जलधीस।
प्रेमहिं ते बिष पान करि, पूजे जात गिरीस।।
5. प्रेम रूप दर्पन अहो, रचै अजूबो खेल।
यामें अपनो रूप कछु, लखि परिहै अनमेल।।