अब मैं पाइबो रे पाइबो ब्रह्म गियान

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अब मैं पाइबो रे पाइबो ब्रह्म गियान।
सहज समाधें सुख में रहिबो कोटि कलप विश्राम।।
गुर कृपाल कृपा जब कीन्हौं हिरदै कँवल बिगासा।
भाग भ्रम दसौं दिस सुझ्या परम जोति प्रकासा।।
मृतक उठ्या धनक कर लीयै काल अहेड़ी भाषा।
उदय सूर निस किया पयाँनाँ सोवत थैं जब जागा।।
अविगत अकल अनुपम देख्या कहताँ कह्या न जाई।
सैन करै मन हो मर रहसैं गूँगै जाँनि मिठाई।।
पहुप बिना एक तरवर फलिया बिन कर तूर बजाया।
नारी बिना नीर घट भरिया सहज रूप  सो पाया।।
देखत काँच भया तन कंचन बिना मानी मन माँनाँ।
उड्या बिहंगम खोज न पाया ज्यूँ जल जलहिं समाँनाँ।।
पूज्या देव बहुरि नहिं पूजौं न्हाये उदिक न नाउँ।
आपे मैं तब आया निरष्या अपन पै आपा सूझ्या।।
आपै कहत सुनत पुनि अपनाँ अपन पै आपा बूझ्या।
अपनै परचै लागी तारी अपन पै आप समाँनाँ।।
कहै कबीर जे आप बिचारै मिटि गया आवन जाँनाँ।।  
 

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