दान पै न कान सुने लैहों सो गुमान भंजि

पीछे

दान पै न कान सुने लैहों सो गुमान भंजि
           हासी पर हासी परहासी आज करौंगो।
जेती तुम ग्वालिन तितेक सब रोकि राखौं
         जमुना कीे ओटि पैं जु सबै काम सरौंगो।
जाकों तूँ कहति कंस ताहि को करौं बिधंस
          हौं तौ जदुबंस बीर काहू सों न डरौंगो।
भूषन उतारि चीर फारि चीर डारि दैहौं
       नन्द की दुहाइ खात टेक सों न टरौंगो।। 

पुस्तक | दानलीला कवि | रसखान भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | घनाक्षरी