बहुत दिनन थैं मैं प्रीतम पाये
पीछेबहुत दिनन थैं मैं प्रीतम पाये भाग बड़े घरि बैठे आये।
मंगलाचार माँहि मन राखौं राम रसाँइण रमना चाषौं।
मंदिर माँहि भयो उजियारा ले सूती अपना पीव पियारा।
मैं रनि राती जे निधि पाई हमहि कहाँ यह तुमहि बड़ाई।
कहै कबीर मैं कछु न कीन्हा सखी सोहाग मोहि दीन्हा।।