जम थैं उलटि भये हैं राम

पीछे

अब हम सकल कुसल करि माँनाँ स्वाति भई तब गोबिंद जाँनाँ।
तन मैं होती कोटि उपाधि भई सुख सहज समाधि।।
जम थैं उलटि भये हैं राम दुख सुख किया बिश्राँम।
बैरी उलटि भये हैं मीता साषत उलटि सजन भये चीता।।
आपा जानि उलटि ले आप तौ नाहीं ब्यापै तीन्यूँ ताप।
अब मन उलटि सनातन हूवा तब हम जाँनाँ जीवन मूवा।।
कहै कबीर सुख सहज समाऊँ आप न डरौं न और डराऊँ।। 

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