अब मोहि ले चल नणद के बीर अपने देसा
पीछेअब मोहि ले चल नणद के बीर अपने देसा।
इन पंचनि मिलि लूटी हूँ कुसंग आहि बदेसा।।
गंग तीर मोरी खेती बारी जमुन तीर खरिहानाँ।
सातौं बिरही मेरे निपजै पंचूँ मोर किसानाँ।।
कहै कबीर यह अकथ कथा है कहताँ कही न जाई।
सहज भाइ जिहिं ऊपजै ते रमि रहे समाई।।