एक अचंभा देखिया बिटिया जायौ बाप

पीछे

चरखा जिनि जरे। कतौंगी हजरी का सूत नण्नद के भइया की सौं।।
जलि जाई धलि ऊपजी आई नगर मैं आप।
एक अचंभा देखिया बिटिया जायौ बाप।।
बाबल मेरा ब्याह करि बर उत्यम ले चाहि।
जब लाग बर पावै नहीं तब लग तूँ ही ब्याहि।।
सुबधी कै घरि लुबधी आयो आन बहू कै भाइ।
चूल्हे अगनि बताइ करि फल सौ दियौ ठठाइ।।
सब जगही मर जाइयाँ एक बड़इया जिनि मरै।
सब राँडनि कौ साथ चरषा को धारै।।
कहै कबीर सो पंडित ज्ञाता जो या पदही बिचारै।
पहलै परच गुर मिलै तौ पीछैं सतगुर तारे।।     

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