हरि के षारे बड़े पकाये जिनि जारे तिनि पाये

पीछे

हरि के षारे बड़े पकाये जिनि जारे तिनि पाये।
ग्यान अचेत फिरै नर लोई ता जनमि जनमि डहकाए।।
धौल मँदलिया बैल रबाबी बउवा ताल बजावै।
पहरि चोलना आदम नाचै भैसाँ निरति कहावै।।
स्यंध बैठा पान कतरै घूँस गिलौरा लावै।
उँदरी बपुरी मंगल गावै कछु एक आनंद सुनावै।।
कहै कबीर सुनहु रे संतौ गडरी परबत खावा।
चकवा बैसि अँगारे निगले समंद अकासा धावा।।

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