एक अचंभा देखा रे भाई ठाढ़ा सिंह चरावै गाई

पीछे

एक अचंभा देखा रे भाई ठाढ़ा सिंह चरावै गाई।
पहले पूत पीछे भई माँई चेला के गुरु लागै पाई।।
जल की मछली तरवर ब्याई पकरि बिलाई मुरगै खाई।
बैलहि डारि गूँनि घरि आई कुत्ता कूँ लै गई बिलाई।।
तलिकर सायाा ऊपरि करि मूल बहुत भाँति जड़ लागे फूल।
कहै कबीर या पद को बूझै ताँकूँ तीन्यूँ त्रिभुवन सूझै।।

पुस्तक | कबीर ग्रंथावली कवि | कबीर भाषा | सधुक्कड़ी रचनाशैली | मुक्तक छंद | पद