अवधू ग्यान लहरि धुनि मीडि रे

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अवधू ग्यान लहरि धुनि मीडि रे।
सबद अतीत अनाहद राता इहि बिधि त्रिष्णाँ षाँड़ी।।
बन कै संसै समंद पर कीया मंछा बसै पहाड़ी।
सुई पीवै ब्राँह्मण मतवाला फल लागा बिन बाड़ी।।
षाड बुणैं कोली मैं बैठी मैं खूँटा मैं गाढ़ी।
ताँणै वाणे पड़ी अनँवासी सूत कहै बुणि गाढ़ी।।
कहै कबीर सुनहु रे संतो अगम ग्यान पद माँही।
गुरु प्रसाद सुई कै नांकै हस्ती आवै जाँही।। 

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