इति तत राम जपहु रे प्राँनी
पीछेइति तत राम जपहु रे प्राँनी बुझौ अकथ कहाँणी।
हीर का भाव होइ जा ऊपरि जागत रैनि बिहानी।।
डाँइन डारै सुनहाँ डोरै स्पंध रहै बन घेरै।
पंच कुटुंब मिलि झुझन लागे बाजत सबद सँघेरै।।
रोहै मृग ससा बन घेरे पारधी बाँण न मेलै।
सायर जलै सकल बन दाझै मंछ अहेरा खेलै।।
सोई पंडित सो तत ज्ञाता जो इहि पदहि बिचारै।
कहै कबीर सोइ गुर मेरा आप तरै मोहि तारै।।