नाहिं न रह्यो मन में ठौर

पीछे

नाहिं न रह्यो मन में ठौर।
नंदनंदन अछत कैसे आनिए उर और ?
चलत, चितवत, दिवस जागत, सपन सोवत राति।
हृदय ते वह स्याम मूरति छन न इत उत जाति।
कहत कथा अनेक ऊधो लोकलाभ दिखाय।
कहा करौ तन प्रेम पूरन घट न सिंधु समाय।
स्याम गात सरोज आनन ललित अति मृदु हास।
सूर ऐसे रूप कारन मरत लोचन प्यास।।    

पुस्तक | सूरसागर (भ्रमरगीतसार) कवि | सूरदास भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | पद