निर्गुन कौन देस को वासी

पीछे

निर्गुन कौन देस को वासी ?
मधुकर ! हँसि समुझाय, सौंह दै बूझति साँच, न हाँसी।
को है जनक, जननि को कहियत, कौन नारि, को दासी ?
कैसो बरन भेस है कैसो केहि रस में अभिलासी।
पावैगो पुनि कियो आपनो जो रे! कहैगो गाँसी।
सुनत मौन ह्वै रह्यो ठग्यो सो सूर सबै मति नासी।।

पुस्तक | सूरसागर (भ्रमरगीतसार) कवि | सूरदास भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | पद