निरखत अंक स्यामसुंदर के बार बार लावति छाती

पीछे

निरखत अंक स्यामसुंदर के बार बार लावति छाती।
लोचनजल कागद मिसि मिलि कै ह्वै गइ स्याम स्याम की पाती।
गोकुल बसत संग गिरिधर के कबहुँ बयारि लगी नहिं ताती।
तब की कथा कहा कहौं, ऊधो, जब हम बेनुनाद सुनि जाती।
हरि के लाड़ गनति नहिं काहू निसिदिन सुदिन रासरसमाती।
प्राननाथ तुम कब धौं मिलौगे सूरदास प्रभु बालसँघाती।। 

पुस्तक | सूरसागर (भ्रमरगीतसार) कवि | सूरदास भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | पद