रहिमन बिपदाहू भली, जो थोरे दिन होय

पीछे

1.    ससि की सीतल चाँदनी, सुंदर, सबहिं सुहाय।
        लगे चोर चित में लटी, घटी रहीम मन आय।। 


2.    ससि, सुकेस, साहस, सलिल, मान सनेह रहीम।
       बढ़त बढ़त बढ़ि जात हैं, घटत घटत घटि सीम।।  


3.    रहिमन वहाँ न जाइये, जहाँ कपट को हेत।
        हम तन ढारत ढेकुली, सींचत अपनो खेत।। 


4.    रहिमन वित्त अधर्म को, जरत न लागै बार।
       चोरी करी होरी रची, भई तनिक में छार।।  


5.    रहिमन विद्या बुद्धि नहिं, नहीं धरम, जस, दान।
        भू पर जनम वृथा धरै, पसु बिनु पूँछ बिषान।।

 

6.    रहिमन बिपदाहू भली, जो थोरे दिन होय।
       हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय।। 
 

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