मान सरोवर ही मिले, हंसनि मुक्ता भोग

पीछे

1.    मान सरोवर ही मिले, हंसनि मुक्ता भोग।
        सफरिन भरे रहीम सर, बक-बालकनहिं जोग।। 
 

2.    माह मास लहि टेसुआ, मीन परे थल और।
        त्यों रहीम जग जानिये, छुटे आपुने ठौर।।  


3.    भीत गिरी पाखान की, अररानी वहि ठाम।
        अब रहीम धोखो यहै, को लागै केहि काम।। 


4.    भूप गनत लघु गुनिन को, गुनी गनत लघु भूप।
        रहिमन गिर तें भूमि लौं, लखों तो एकै रूप।।  


5.    यह रहीम निज संग लै, जनमत जगत न कोय।
       बैर, प्रीति, अभ्यास, जस, होत होत ही होय।। 

पुस्तक | रहीम रचनावली कवि | रहीम भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | दोहा
विषय | नीति,