रहिमन तीन प्रकार ते हिम अनहित पहीचानि
पीछे1. रहिमन तीन प्रकार ते हिम अनहित पहीचानि।
पर बस परे परोस बस परे मामिला जानि।।
2. जो बड़ेन को लघु कहे नहिं रहीम घटि जाहिं।
गिरिधर मुरलीधर कहे कछु दुख मानत नाहिं।।
3. रीति प्रीति सबसों भली बैर न हित मित गोत।
रहिमन याही जनम की बहुरि न संगत होत।।
4. अधम वचन काको फल्यो, बैठि ताड़ की छाँह।
रहिमन काम न आय है, ये नीरस जग माँह।।
5. अनकीन्हीं बातैं करै, सोवत जागे जोय।
ताहि सिखाय जगायबो, रहिमन उचित न होय।।