बिगरी बात बनै नहीं लाख करौ किन कोय

पीछे

1.    पावस देखि रहीम मन कोइल साधे मौन।
       अब दादुर वक्ता भए हमको पूछत कौन।।


2.    बिगरी बात बनै नहीं लाख करौ किन कोय।
       रहिमन फाटे दूध को मथे न माखन होय।।


3.    रहिमन अब वे बिरछ कहँ जिनकी छाँह गँभीर।
        बागन बिच बिच देखिअत सेंहुड़ कुटज करीर।।


4.    रहिमन सीधी चाल सों प्यादा होत वजीर।
        फरजी साह न हुइ सकै गति टेढ़ी तासीर।।


5.    संपति भरम गँवाइ कै हाथ रहत कछु नाहिं।
       ज्यों रहीम ससि रहत है दिवस अकासहिं माहिं।।
 

पुस्तक | रहीम रचनावली कवि | रहीम भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | दोहा
विषय | नीति,