बरु वै कुब्जा भलो कियो

पीछे

बरु वै कुब्जा भलो कियो।
सुनि सुनि समाचार ऊधो मो कछुक सिरात हियो।
जाको गुन, गति, नाम, रूप, हरि हार्यो, फिरि न दियो।
तिन अपनो मन हरत न जान्यो हँसि हँसि लोग जियो।
सूर तनक चंदन चढ़ाय तन ब्रजपति बस्य कियो।
और सकल नागरि नारिन को दासी दाँव लियो।।

पुस्तक | सूरसागर (भ्रमरगीतसार) कवि | सूरदास भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | पद