जीवन मुँहचाही को नीको

पीछे

जीवन मुँहचाही को नीको।
दरस परस दिनरात करति है कान्ह पियारे पी को।
नयननिस मूँदि मूँदि किन देखौ बँध्यो ज्ञान की पोथी को।
आछे सुंदर स्याम मनोहर और जगत सब फीको।
सुनौ जोग को का लै कीजै जहाँ ज्यान है जी को।
खाटी मही नहीं रुचि मानै सूर सवैया घी को।। 

पुस्तक | सूरसागर (भ्रमरगीतसार) कवि | सूरदास भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | पद