तन रहीम है कर्म बस, मन राखो ओहि ओर

पीछे

1.    तन रहीम है कर्म बस, मन राखो ओहि ओर।
        जल में उलटी नाव ज्यों, खैंचत गुन के जोर।। 


2.    निज कर क्रिया रहीम कहि, सुधि भाव के हाथ।
        पाँसे अपने हाथ में, दाँव न अपने हाथ।।  


3.    भावी काहू ना दही, भावी दह भगवान।
        भावी ऐसी प्रबल है, कहि रहीम यह जान।।  


4.    भावी या उनमान को, पांडव बनहि रहीम।
        जदपि गौरि सुनि बाँझ है, बरु है संभु अजीम।।  


5.    महि नभ सर पंजर कियो, रहिमन बल अवसेष।
        सो अर्जुन बैराट घर, रहे नारि के भेष।।  
 

पुस्तक | रहीम रचनावली कवि | रहीम भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | दोहा