बसि कुसंग चाहत कुसल यह रहीम जिय सोस
पीछे1. रहिमन नीच प्रसंग ते नित प्रति लाभ विकार।
नीर चोरावै संपुटी मारु सहै घरियार।।
2. बसि कुसंग चाहत कुसल यह रहीम जिय सोस।
महिमा घटी समुद्र की रावन बस्यो परोस।।
3. रहिमन जिह्वा बावरी, कहि गइ सरग पताल।
आपु तो कहि भीतर रही, जूती खात कपाल।।
4. रहिमन जो तुम कहत थे, संगति ही गुन होय।
बीच उखारी रमसरा, रस काहे ना होय।।
5. जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चंदन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग।।