कोऊ आवत है तन स्याम
पीछेकोऊ आवत है तन स्याम।
वैसेइ पट, वैसिय रथ बैठनि, वैसिय है उर दाम।
जैसी हुतिं उठि तैसिय दौरीं छाँड़ि सकल गृह काम।
रोम पुलक, गदगद भईं तिहि छिन सोचि अंग अभिराम।
इतनी कहत आय गए ऊधो, रहीं ठगी तिहि ठाम।
सूरदास प्रभु ह्याँ क्यों आवैं बँधे कुब्जारस स्याम।।