लाल; तुम्हारे रूप की, कहौ, रीति यह कौन
पीछे1. जसु अपजसु देखत नहीं देखत साँवल-गात।
कहा करौं, लालच-भरे चपल नैन चलि जात।।
2. नख-सिख-रूप भरे खरे, तौ माँगत मुसकानि।
तजत न लोचन लालची ए ललचौहीं बानि।।
3. हरि-छबि-जल जब तैं परे, तब तैं छिनु बिछुरैं न।
भरत ढरत, बूड़त तरत रहत घरी लौं नैन।।
4. डर न टरै, नींद न परै, हरै न काल-बिपाकु।
छिनकु छाकि उछकै न फिरि, खरौ बिषमु छबि-छाकु।।
5. लाल; तुम्हारे रूप की, कहौ, रीति यह कौन।
जासौं लागत पलकु दृग लागत पलक पलौ न।।