चमचमात चंचल नयन बिच घूँघट-पट झीन

पीछे

1.    छुटे छुटावत जगत तैं सटकारे, सुकुमार।
       मनु बाँधत बेनी-बँधे नील, छबीले बार।। 


2.    चमचमात चंचल नयन बिच घूँघट-पट झीन।
       मानहुँ सुरसरिता-बिमलजल उछरत जुग मीन।। 


3.    लखि लखि अँखियनु, अधखुलिनु आँगु मोरि, अँगिराइ।
      आधिक उठि, लेटति लटकि, आलस-भरी जम्हाइ।। 


4.    बुधि अनुमान, प्रमान श्रुति किऐं नीठि ठहराइ।
       सूछम कटि पर ब्रह्म की अलख, लखी नहिं जाइ।। 


5.    रूप-सुधा-आसव छक्यौ, आसव पियत बनै न।
       प्यालैं ओठ, प्रिया-बदन रह्यौ लगाऐं नैन।। 

पुस्तक | बिहारी सतसई कवि | बिहारीलाल भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | दोहा