कुटिल अलक छुटि परत मुख बढ़िगौ इतौ उदोतु

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1.    कुटिल अलक छुटि परत मुख बढ़िगौ इतौ उदोतु।
        बंक बकारी देत ज्यौं दामु रुपैया होतु।।


2.    अरी, खरी सटपट परी बिधु आधैं मग हेरि।
        संग-लगैं मधुपनु लई भागनु गली अँधेरि।। 
 

3.    छाले परिबे कैं डरनु सकै न हाथ छुवाइ।
        झझकत हियैं गुलाब कैं झँवा झँवैयत पाइ।। 


4.    पग पग मग अगमन परत चरन-अरुनदुति झूलि।
       ठौर ठौर लखियत उठे दुपहरिया से फूलि।।


5.    छिप्यौ छबीलौ मुँहु लसै नीलै अंचर-चीर।
        मनौ कलानिधि झलमलै कालिंदी कैं तीर।। 
 

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