लोथिन सों लोहूके प्रबाह चले जहाँ-तहाँ

पीछे

लोथिन सों लोहूके प्रबाह चले जहाँ-तहाँ
       मानहुँ गिरिन्ह गेरु झरना झरत हैं।
श्रोनितसरित घोर कुंजर-करारे भारे,
      कूलतें समूल बाजि-बिटप परत हैं।।
सुभट-सरीर नीर-चारी भारी-भारी तहाँ
      सूरनि एछाहु कूर कादर डरत हैं।
फेकरि-फेकरि फेरु फारि-फारि पेट खात,
      काक-कंक बालक कोलाहलु करत हैं।।

पुस्तक | कवितावली कवि | गोस्वामी तुलसीदास भाषा | अवधी रचनाशैली | मुक्तक छंद | घनाक्षरी