कतहुँ बिटप-भूधर उपारि परसेन बरष्षत

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कतहुँ बिटप-भूधर उपारि परसेन बरष्षत।
कतहुँ बाजिसों बाजि मर्दि, गजराज करष्षत।।
चरनचोट चटकन चकोट अरि-उर-सिर बज्जत।
बिकट कटकु बिद्दरत बीरु बारिदु जिमि गज्जत।।
लंगूर लपेटत पटकि भट, जयति राम जय! उच्चरत।
तुलसीस पनवनंदनु अटल जुद्ध क्रुद्ध कौतुक करत।।

पुस्तक | कवितावली कवि | गोस्वामी तुलसीदास भाषा | अवधी रचनाशैली | मुक्तक छंद | छप्पय