नगरु कुबेरको सुमेरुकी बराबरी

पीछे

नगरु कुबेरको सुमेरुकी बराबरी,
      बिरंचि-बुद्धिको बिलासु लंक निरमान भो।
ईसहि चढ़ाइ सीस बीसबाहु बीर तहाँ
      रावनु सो राजा रज-तेजको निधानु भो।।
तुलसी तिलोककी समृद्धि, सौंज, संपदा
      सकेलि चाकि राखी, रासि, जाँगरु जहानु भो।
तीसरें उपास बनबास सिंधु पास सो
      समाजु महाराजजू को एक दिन दानु भो।।
 

पुस्तक | कवितावली कवि | गोस्वामी तुलसीदास भाषा | अवधी रचनाशैली | मुक्तक छंद | कवित्त