बनिता बनी स्यामल गौरके बीच

पीछे

बनिता बनी स्यामल गौरके बीच,
         बिलोकहु, री सखि ! मोहि-सी ह्वै।
मगजोगु न कोमल, क्यों चलिहै,
         सकुचाति मही पदपंकज छ्वै।।
तुलसी सुनि ग्रामबधू बिथकीं,
         पुलकीं तन, औ चले लोचन च्वै।
सब भाँति मनोहर मोहनरूप
         अनूप हैं भूपके बालक द्वै।।

पुस्तक | कवितावली कवि | गोस्वामी तुलसीदास भाषा | अवधी रचनाशैली | मुक्तक छंद | कवित्त