राम नाम जान्यो नहीं

पीछे

1.    रहिमन सुधि सबतें भली, लगै जो बारंबार।
        बिछुरे मानुष फिरि मिलें, यहै जान अवतार।।  

 

2.    राम नाम जान्यो नहीं, भइ पूजा में हानि।
        कहि रहीम क्यों मानिहैं, जम के किंकर कानि।। 

 

3.    राम नाम जान्यो नहीं, जान्यो सदा उपाधि।
        कहि रहीम तिहिं आपुनो, जनम गँवायो बादि।। 

 

4.    सदा नगारा कूच का, बाजत आठों जाम।
        रहिमन या जग आइ कै, को करि रहा मुकाम।।  

 

5.    समय दसा कुल देखि कै, सबै करत सनमान।
        रहिमन दीन अनाथ को, तुम बिन को भगवान।। 
 

पुस्तक | रहीम रचनावली कवि | रहीम भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | दोहा