कहत सबै, बेंदी दियैं
पीछे1. दियौ अरघु, नीचैं चलौ, संकटु भानैं जाइ।
सुचिति ह्वै औरौ सबै ससिहिं बिलोकै आइ।।
2. सघन कुंज, घन घन-तिमिरु, अधिक अँधेरी राति।
तऊ न दुरिहै, स्याम, वह दीपसिखा सी जाति।।
3. जरी-कोर गोरैं बदन बढ़ी खरी छबि, देखु।
लसित मनौ बिजुरी किए सारद-ससि-परिबेषु।।
4. भूषन-भारु सँभारिहै क्यौं इहिं तन सुकुमार।
सूधे पाइ न धर परैं सोभा हीं कैं भार।।
5. कहत सबै, बेंदी दियैं आँकु दसगुनौ होतु।
तिय-लिलार बेंदी दियैं अगिनितु बढ़तु उदोतु।।