निसि अंधियारी, नील पटु पहिरि

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1.    निसि अंधियारी, नील पटु पहिरि, चली पिय-गेह।
       कहौ, दुराई क्यौं दुरै दीप-सिखा सी देह।। 


2.    जंघ जुगल लोइन निरे करे मनौ बिधि मैन।
       केलि-तरुनु दुखदैन ए, केलि-तरुन सुखदैन।। 


3.    बड़े कहावत आप सौं, गरुवे गोपीनाथ।
       तौ बदिहौं, जौ राखिहौ हाथनु लखि मनु हाथ।। 


4.    तन भूषन, अंजन दृगनु, पगनु महावर-रंग।
      नहिं सोभा कौं साजियतु, कहिबैं हीं कौं अंग।। 


5.    तूँ रहि, हौं हीं, सखि, लखौं; चढ़ि न अटा, बलि, बाल।
       सबहिनु बिनु हीं ससि उदै उीजतु अरघु अकाल।।
 

पुस्तक | बिहारी सतसई कवि | बिहारीलाल भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | दोहा