जो विषया संतन तजी

पीछे

1.    जैसी तुम हमसों करी, करी करो जो तीर।
        बाढ़े दिन के मीत हौ, गाढ़े दिन रघुबीर।।


2.    जो रहीम करिबो हुतो, ब्रज को इहै हवाल।
        तौ कहो कर पर धर्यो, गोवर्धन गोपाल।।


3.    जो रहीम जग मारियो, नैन बान की चोट।
        भगत भगत कोउ बचि गये, चरन कमल की ओट।।


4.    जो विषया संतन तजी, मूढ़ ताहि लपटाय।
        ज्यों नर डारत वमन कर, स्वान स्वाद सों खाय।।


5.    तैं रहीम अब कौन है, एती खैंचत बाय।
        खस कागद को पूतरा, नमी माँहि खुल जाय।।
 

पुस्तक | रहीम रचनावली कवि | रहीम भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | दोहा