एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय

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1.    एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
        रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय।।


2.    करत निपुनई गुन बिना, रहिमन निपुन हजूर।
        मानहु टेरत बिटप चढ़ि, मोहि समान को कूर।।


3.    रहिमन बात अगम्य की कहन सुनन की नाहिं।
        जौ जानत ते कहत नहिं कहत ते जानत नाहिं।।


4.    अंजन दियो तो किरकिरी सुरमा दियो न जाय।
        जिन आँखिन सों हरि लख्यो रहिमन बलि बलि जाय।। 


5.    अच्युत-चरण-तरंगिणी, शिव-सिर-मालति-माल।
        हरि न बनायो सुरसरी, कीजो इंदव-भाल।। 
 

पुस्तक | रहीम रचनावली कवि | रहीम भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | दोहा