गद्यांश (विधा - आलोचना)
>अधिकार
>अभिनय
>अभिमान
>आंदोलन
>आक्रोश
>आत्मसम्मान
>आदर्श
वस्तुतः मध्यकाल के अलंकारशास्त्री काव्य को तैयार माल के रूप में देखने के अभ्यस्त इसलिए हो गए थे कि…
Read More
वस्तुतः बीसवीं सदी के चौथे दशक में विद्रोह फक्कड़पन के ही किसी-न-किसी रूप को लेकर साहित्य में प्रकट…
Read More
अपने सर्जनात्मक रूप में आलोचना-कर्म मूलतः व्यक्तिगत प्रयास है, क्योंकि किसी कृति-संबंधी प्रत्येक…
Read More
’आलोचना की संस्कृति’ को ठीक से समझने के लिए संस्कृति की आलोचना जरूरी है और संस्कृति की…
Read More
आलोचना की भाषा शून्य में निर्मित नहीं होती; वह पहले ही से विविध सांस्कृतिक परतों से छनती हुई आती…
Read More
‘छायावाद’ की विभिन्न प्रवृत्तियों और विशेषताओं की गणना करने वाले आलोचकों ने भी छायावाद…
Read More
प्रेमचन्द के माध्यम से द्विवेदीजी ने एक प्रकार से हिन्दी जाति के भावबोध की उस विशेषता की ओर संकेत…
Read More
रचना की महानता से ही आलोचना महान होती है। यह छायावादी रचना का वैभव ही था जिसने हिंदी में आलोचना के…
Read More
प्रगतिवाद हिन्दी साहित्य की परम्परा का स्वाभाविक विकास है।
---
प्रगतिशील साहित्य कोई स्थिर…
Read More
प्रयोगवाद उत्तर-छायावाद की समाजविरोधी अतिशय व्यक्तिवादी मनोवृत्ति का ही बढ़ाव है।
---
‘वाद’…
Read More
मानवीय प्रवृत्तियों का दमन सामन्ती दमन का ही एक अंग है। अमानवीकरण की यह प्रक्रिया शासक वर्गों के…
Read More
कविता में जहाँ देवताओं के प्रेम का वर्णन होता था, वह स्थान साधारण मनुष्य ले ले-यह जनतांत्रिक भाव…
Read More
भक्ति आन्दोलन को मुसलमानों के विरुद्ध हिन्दुओं की प्रतिक्रिया बताने की जिम्मेदारी मूलतः साम्राज्यवादी…
Read More
रहस्यवाद का एक निश्चित दर्शन है जिसके अनुसार सत्य ‘रहस्य’ है और उसका केवल ‘दर्शन’…
Read More
छायावादी कवियों ने कभी-कभी व्यंजनागर्भी प्रतीकों का प्रयोग किया। ऐसा प्रायः वहीं हुआ है जहाँ किसी…
Read More
दरअसल मुखौटा इसलिए मूल्यवान है कि वह स्वयं एक कलाकृति है और कलाकृति स्वयं मनुष्य से ज्यादा अभिव्यंजक…
Read More
यह आकस्मिक नहीं है कि भारतीय संस्कृति के नाम पर नैतिकता की ध्वजा फहरानेवाले प्रकृति के सौन्दर्य को…
Read More