गिराया है जमीं होकर...

पीछे

गिराया है जमीं होकर, छुटाया आसमाँ होकर।
निकाला, दुश्मनेजाँ; और बुलाया, मेहरबाँ होकर।


चमकती धूप जैसे हाथवाला दबदबा आया,
जलाया गरमियाँ होकर, खिलाया गुलसिताँ होकर।


उजाड़ा है कसर होकर, बसाया है असर होकर,
उखाड़ा है रवाँ होकर, लगाया बागबाँ होकर।


घटा है भाप होकर जो, जमा है रंगोबू होकर,
अधर होकर जो निकला है, समाया है समा होकर।


चढ़ाया है निडर होकर, उतारा है सुघर होकर,
रमा होकर रमाया है, सताया है अमा होकर।


बड़ों को गिरने से रोका, ऐसी आँखें लड़ाई हैं,
सभी उपमाएँ ले ली हैं, न होकर, निरुपमा होकर।     
 

पुस्तक | बेला लेखक | सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला भाषा | खड़ी बोली विधा |