भेद कुल खुल जाय वह
पीछेभेद कुल खुल जाय वह सूरत हमारे दिल में है।
देश को मिल जाय जो पूँजी तुम्हारी मिल में है।
हार होंगे हृदय के खुलकर सभी गाने नये,
हाथ में आ जायगा वह राज जो महफिल में है।
तर्स है यह, देर से आँखें गड़ीं श्रृंगार में,
और खिलायी पड़ेगी जो गुराई तिल में है।
पेड़ टूटेंगे; हिलेंगे, जोर की आँधी चली,
हाथ मत डालो, हटाओ पैर, बिच्छू बिल में है।
ताक पर है नमक-मिर्चा, लोग बिगड़े या बने,
सीख क्या होगी पराई जब पिसाई सिल में है।