बाहर मैं कर दिया गया हूँ

पीछे

बाहर मैं कर दिया गया हूँ। भीतर, पर, भर दिया गया हूँ।


ऊपर वह बर्फ गली है, नीचे यह नदी चली है;
सख्त तने के ऊपर नर्म कली है;
इसी तरह हर दिया गया हूँ। बाहर मैं कर दिया गया हूँ।


आँखों पर पानी है लाज का, राग बजा अलग-अलग साज का;
भेद खुला सविता के किरण-व्याज का;
तभी सहज वर दिया गया हूँ। बाहर मैं कर दिया गया हूँ।


भीतर, बाहर; बाहर भीतर; देखा जब से, हुआ अनश्वर;
माया का साधन यह सस्वर;
ऐसे ही घर दिया गया हूँ। बाहर मैं कर दिया गया हूँ।  

पुस्तक | बेला लेखक | सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला भाषा | खड़ी बोली विधा |