स्नेह की रागिनी बजी

पीछे

स्नेह की रागिनी बजी
       देह की सुर-बहार पर,
वर विलासिनी सजी
       प्रिय के अश्रुहार पर।

 

नयन हो गये हैं वे
       अयन जिनका खो गया,
सुख के शयन के लिए
       आये हैं असि की धार पर।

 

ओस से धुल गयी कली,
       रवि की आँख खुल गयी,
तरुण मूर्छना जगी
       विश्व के तार-तार पर।    

पुस्तक | बेला लेखक | सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला भाषा | खड़ी बोली विधा |