पाती सखि! मधुबन तें आई

पीछे

पाती सखि! मधुबन तें आई।
ऊधो हाथ स्याम लिखि पठई, आय सुनो, री माई।
अपने अपने गृह ते दौरीं लै पाती उर लाई।
नयनन नीर निरखि नहिं खंडित, प्रेम न बिथा बुझाई।
कहा करौं सूनो यह गोकुल हरि बिनु कछु न सुहाई।
सूरदास प्रभु कौन चूक तें स्याम सुरति बिसराई।। 

पुस्तक | सूरसागर (भ्रमरगीतसार) लेखक | सूरदास भाषा | ब्रजभाषा विधा | पद