ऊधो! हम आजु भई बड़ भागी

पीछे

ऊधो! हम आजु भई बड़ भागी।
जैसे सुमन गंध लै आवतु पवन मधुप अनुरागी।
अति आनंद बढ्यो अंग अंग में, परै न यह सुख त्यागी।
बिसरे सब दुख देखत तुमको स्यामसुँदर हम लागी।
ज्यों दरपन मधि दृग निरखत जहँ हाथ तहाँ नहिं जाई।
त्यों ही सूर हम मिली साँवरे बिरह बिथा बिसराई।। 

पुस्तक | सूरसागर (भ्रमरगीतसार) लेखक | सूरदास भाषा | ब्रजभाषा विधा | पद