कबहुँ सुधि करत गोपाल हमारी

पीछे

कबहुँ सुधि करत गोपाल हमारी।
पूछत नंद पिता ऊधो सों अरु जसुमति महतारी।
कबहुँ तौ चूक परी अनजानत, कह अबके पछिताने।
बासुदेव घर भीतर आए हम अहीर नहिं जानै।
पहिले गरग कह्यो हो हमसों, ‘या देखे जनि भूलै’।
सूरदास स्वामी के बिछुरे राति दिवस उर सूलै।।

पुस्तक | सूरसागर (भ्रमरगीतसार) लेखक | सूरदास भाषा | ब्रजभाषा विधा | पद